|| हरि ૐ तत्सत ||
मौन
हरि ॐ तत्सत
मौन स्वाभाविक है, सरल है। हम किसी भी प्रकार की साधना कर रहे हैं लेकिन मौन सर्व साधनाकी अंतिम मंजिल है।
यदि आप हर धर्म और पंथ का सार निकालते हैं, तो इसका अंतिम चरण मौन है। दूसरे शब्दों में, मौन का अर्थ है निर्विचार अवस्था। आप जो मंत्र, पूजा, पाठ या ध्यान करते हैं वह आप मौन रहने के लिए ही कर रहे है. यह हमारे शास्त्र कारोने खोजी हुई अदभुत विधि है. जब आप विचारहीन अवस्था में पहुंच जाते हैं, तो आपको मौन की स्थिति प्राप्त हो जाती। अर्थात जब आप लगाव-नफरत से परे होते हो तो शून्य होते हो या, राग-द्वेषसे शून्य हो जाते हो तब मौन अवस्था हांसिल कर लेते हो. उस समय आप समत्व की भावना में होते हैं। आपको किसी से कोई लगाव नहीं है या आप किसी से नफरत नहीं करते हैं और उस समय आप स्थिति का सही मूल्यांकन कर रहे हैं। इस समय लिया गया निर्णय सबसे सटीक है। इस प्रकार आपकी निर्णय क्षमता दृढ हो जाती है.
आम तौर पर, मन को सब कुछ विभाजित कर देखनेकी आदत होती है और वही वजह है जो ममत्व और द्वेष भाव को जन्म देता है और अंतत: वह हमारे भीतर मेरा तेरा, भीतर बाहर की स्थित निर्मित करता है. वास्तवमें वैश्विक चेतनामय आयाममें यह भिन्नत्व की स्थित कभी नहीं होती है. मुलभुत चेतना सभी समय समत्व भावमें ही स्थित होती है. जो व्यक्ति आत्म ज्ञानी है वह भी इसी तरह सम भाव की स्थितमे रहता है. वह हर भाव से निर्लिप्त अवस्थामे ही जीता है। वह कभी भिन्नता की स्थितमे नहीं जीता और इसी कारण वह वाद – विवादकी स्थितिसे परे होता है.
दूसरी महत्वकी बात यह है की वाणी आपके मन और व्यवहारको चंचल बना देती है। आपको अपने आत्म तत्व से परे रखती है। जब मौन की स्थिति आपको आपकी आंतरिक दुनिया में ले जाकर आपको अपनी सही पहचानसे परिचित कराती है। आपको अत्यधिक शांति प्रदान करती है और वही शांत अवस्था आपको सही निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, आपको मानसिक रूप से भी यही शांत अवस्था सक्षम बनाती है और आपके मन को भी वह स्वस्थता प्रदान करती है। यह मौन स्थिति आपको षड रिपुसे परे रख मनको सहक नियंत्रित करनेमें आसानी करती है और इस तरह आप सभी परिस्थितयोंमे विक्षिप्तता के भावसे परे होते जाते हो, अर्थात आप परम धैर्य में सदा स्थिर रहते हो.
इस प्रकार, मौन आपको मनोव्यापारसे दूर कर आपको आंतरिक और बाहरी दुनिया का सटीक परिचय देता है।
वस्तुत: आज की सारी बीमारीया मानसिक है। यह आपके स्वभाव और सामाजिक परिस्थितियों के कारण है। यदि मन शांत और स्थिर हो जाता है, तो शरीर के एक एक अंग को भी शांति प्रदान होती है. की जा सकती है और मनके कार्य करने का ढंग भी वैसा ही है. जैसे आपका मन शांत होता है, वह अपने आप अपने भीतर जरूरी दुरस्ती करने लगता है.
लेकिन यह सब करने के लिए, मौन शिविरका प्रशिक्षण जरूरी है और मौन शिविरमें हिस्सा लेने के लिए कम से कम दस दिन बिताने पड़ते हैं। इस शिविर के बाद, जब आप वापस सांसारिक विश्वममें जाते हैं, तो आप एक नए व्यक्तित्व के साथ जाते हैं। आप देखेंगे कि आपकी कार्य प्रक्रिया में आमूल परिवर्तन आ गया होता है। नई जीवन शक्ति और उत्साह का संचार होता है। मौन शिविरके बाद अधिक गतिशीलतासे कार्य करने के लिए शरीर और मन दोनों आपको पूर्ण सहयोग देने सक्षम हो जाते है ।
हरि ॐ तत्सत