|| हरि ૐ तत्सत ||

सिद्धयोगी श्री विभाकर पंड्या

हरि ॐ तत्सत

ब्रह्मलीन श्री विभाकर पंड्या सिद्ध योगी थे। योग और कुंडलिनी के गूढ़ विषय में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। योग के प्राचीन विषय में नवीनतापूर्ण तोरकी वैज्ञानिक साधना पद्धति विकसित करने के लिए उन्होंने बहुत गहरा और मुलभुत ऐसा प्रायोगिक योगदान दिया है।

अपनी छोटी बहन की मृत्यु के बाद उन्हे यह प्रश्न लगातार सताता था की “मृत्यु के बाद मानव का क्या होता है”. अपने प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए आपने भारत और नेपाल के कई प्रसिद्ध संतों के साथ बातचीत की, स्वयं वास्तविक प्रयोग किए. साथ साथ आपने वेद-उपनिषद और जागृत साधना के सभी शास्त्रों का गहनतम अध्ययन किया, जगतके के विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बारे में गहरी समझ और ज्ञान प्राप्त किया. अपनी तीस साल की कड़ी मेहनत के बाद आपको मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अपने प्रश्न का उत्तर भी मिला ओर आपने “आत्म-साक्षात्कार”की उपलब्धि भी की. आपकी इस तीस सालकी आध्यात्मिक यात्राके दौरे के दरम्यान आपको जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे समाज को वापस देने के महान संकल्प से सभी साधक गणको “सिद्ध योग साधन मंडल” नामक संस्थाका का उपहार मिला है. यह संस्था सिद्ध योगी श्री विभाकर पंड्याजीका मानस संतान भी कहा जा सकता है. उन्होंने इस संस्थान की शुरुआत उन्नीसो छहत्तर (1976) में की थी. योग के पथ पर संघर्ष कर रहे कई साधकोको सिद्ध योगी “सिद्ध योग साधन मंडल” के नेतृत्व में मार्गदर्शन दे रहे हैं। अपने नवीनतापूर्ण एवं वैज्ञानिक साधनाकीय दृष्टिकोण के तहत कई साधकोंने आध्यात्मिक विज्ञान के मार्ग पर चलने वाले संदेहों का वास्तविक और अंतर्निहित समाधान हासिल किया है, और इस तरह वे अपने आत्म-साक्षात्कार के रास्ते पर शीघ्र गति को प्राप्त हुए है.

आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए उनके द्वार रचित अभिनव और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साधनात्मक पाठ्यक्रम को प्रारम्भिक से उन्नत ऐसी तेरह शिविरों में विभाजित किया गया है। इन शिविरों का अध्ययन साधको द्वारा सामाजिक जीवन में रहकर ही किया जा रहा है और इस तरह वह सभी साधकगैन “आत्म-साक्षात्कार” की ओर सहज प्रगति करते रहते है. इसीके अलावा साधकगण “सिद्ध योग साधन मंडल” द्वारा प्रेषित विविध रचनात्मक और आध्यात्मिक प्रवृत्तियोंमें सहभागी बन समाजमें योग शिक्षा का अमूल्य प्रचार और प्रसार करने के यज्ञीय कार्यमे भी अपना योगदान करते रहते है.

जब एक सिध्द योगी शरीर त्याग करता है, तो उसकी आत्मा “ब्रह्मरंध्र” द्वारा शरीर त्याग देती है। यह एक बहुत ही दुर्लभ मौत है। यह घटना उच्च कुशल योगी के जीवन में ही घटित होती है। जो मन पर पूर्ण नियंत्रण रखता केवल वह योगी ही इसे कर सकता है ऐसा योग शास्त्रमें वर्णित है. जब आत्मा शरीर का इस प्रकार त्याग करता है, तो मृतक का शरीर लंबे समय तक खराब नहीं होता है। इस तरह मृत्यु प्राप्त योगी का शरीर जीवित मानव शरीर की तरह ही स्वस्थ रहता है.

16 अक्टूबर दो हजार छः पर सिद्ध योगीने ब्रह्मरन्ध्र द्वारा स्वेच्छा से समाधिमें प्रवेश किया था। उनाके मस्तिष्क पर इसका छेदयुक्त निशान इस बातका स्पष्ट दर्शन दे रहा था. मृत्यु पश्चात उनके शरीर को दो दिन – तकरीबन पचास घंटे बर्फ के उपयोग के बिना या दवा के किसी भी उपयोग के बिना रखा गया था ताकि शिष्य अपने प्रिय गुरु के अंतिम दर्शन कर सकें। इन दो दिनों – पचास घंटों के दौरान योगी के शरीर में कोई दोष या खराबी नही पाई गई थी। पचास घंटे बाद शरीर बहुत नरम था, हाथ और पैरकी उंगलियों को एक जीवित इंसान की तरह मोडा जा सकता था. इस पचास घंटों के दौरान, उनके शरीर में कोई अतिरिक्त वजन महसूस नही किया गया था.

हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि पूज्य गुरुजी श्री विभाकर पंड्या ने अपने जीवन के पैंसठ वर्षों में पांचसो सालकी अवधि में किया जा सके इस मात्रा का आध्यात्मिक कार्य किया था. इसके साथ उन्होंने सभी साधकों और समाज को एक सरल उदाहरण भी दिया की आध्यात्मिक साधना, सामाजिक गतिविधियों, पारिवारिक मामलों और सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी किया जा सकता है। सद्गुरु श्री विभाकर पंड्या अब शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी चेतना उनके सभी साधकों के माध्यम से सहज रूप से काम करती है और उनके द्वारा शुरू की गई आध्यात्मिक गतिविधियां भारत और विदेशों में तेजी से आगे बढ़ रही हैं।

वर्तमान में, सिद्धयोग साधन मंडल का कार्य श्री विशाल भाई पंड्या के मार्गदर्शन में बहुत उत्साह से आगे बढ़ रहा है और देश – विदेश के कई आध्यात्मिक साधकोंकी जिज्ञासाओका उचित समाधान इस माध्यमसे सुचारु रूपसे हो रहा है.

हरिॐ तत्सत

सिद्ध योग साधन मंडल

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