|| हरि ૐ तत्सत ||

ध्यान

वर्तमानमें ध्यान साधना बहुत जरूरी है क्योंकि वर्तमान मनुष्य सतत तनावमें रहता है। वर्तमान मनुष्यको अच्छा रोजगार या व्यापार भी चाहिए, परिवारका अच्छी तरहसे निर्वाह भी करना है और यह सभी उसे त्वरित रूपसे प्राप्त करना है. इतनी साड़ी बातें वह सुचारु रूपसे करनेमे सहज अक्षम होता है और उसके परिणामरूप वह अति तनावपूर्ण जीवनशैली में व्यस्त रहता है। यह बात मनुष्यके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर कर देती है। शरीर जिसका असर शरीर पर पड़ता है। चालीस वर्ष की आयुमें वह मधुमेह, बीपी और कई अन्य बीमारियों से ग्रसित होता जाता है.इन सभीमे हम यदि ध्यान साधना को समझे तो वह ही विशुद्ध रूप मानवीय मन और मस्तिष्क को आराम दे पाती है देता है और मनुष्यको सहज स्वस्थ प्रदान रखताकरती है।

जब मनुष्य ध्यान के महत्व को समझता है तब वह ध्यान साधना की सहज विधि को खोजनेके पथ पर चल पड़ता । उअसकी यह खोजमे उसे अनेकानेक पाखंडी और ढोंगी महात्मा भी मिल जाते है जो ुआँसे भटका भी देते है। वह अनेक स्थानों पर घूमता है लेकिन उसे मानसिक स्वस्थता प्राप्त करनेकी जड़ी -बूटियां नहीं मिलती हैं. यदि ऐसा व्यक्ति नियमित रूप से ध्यान करता है, तो उसकी सभी परेशानियां दूर हो सकती है पर उसे ध्यान के सही तरीके को समझना और उसे नियमित रूपसे अमलमे लाना चाहिए

आमतौर पर ध्यानका अर्थ है एक चित। अब जब एक चित के बारे में बात की जाती है, तो जो लोग इसे एकाग्रताके रपमे ही समझते है। वास्तव में ध्यान एकाग्रता नहीं समग्रता है। यदि आप कोई इकाई पर एकाग्र होते है आपकी सारी दुनिया इकाई के आलावा समाप्त हो जाती है। जबकी आप समग्र होते है तब आप पूरी तरह से सभी पहलुओं के बारेमे जागृत रह पाते है।

अब हम इसे अलग तरह से समझते हैं। हमारे शरीरमें चेतना सहज उपस्थित रहती है. वह पैरों की उंगलियोंसे लेकर सिर के ब्रह्मरंध में सहज गतिशील रहती है और आपको लगातार अपनी उपस्थिति से प्रभावित करती रहती है। एक चित्त यानि इस व्याप्त चेतना को देखना यही होता है. इस चेतनाके प्रत्येक आंदोलन पर ध्यान करना यही है. अगर साधक यह कर पाएगा तब भी यह अपने आपमें बड़ी उपलब्धि है. साथ ही यह समझना भी जरूरी है की यह सभी चीजे सभी चीजें बिना किसी प्रयास सहजता से होनी चाहिए, अर्थात यह प्रयत्न रहित प्रयत्न होना चाहिए इसीलिए पु-दिव्य दादा ने ध्यान में अंतर्दृष्टि देते हुए कहा है कि यह प्रयास रहित प्रयास है. संक्षेप में, ध्यान का अर्थ है सहज प्रयास। इस प्रकार का ध्यान करने से आप शतावधानी ( एक साथ सौ चीजे ध्यानमें रखना ) हो सकते हैं और जीवन से संपूर्ण तनावमुक्त हो सकते हैं।

जो निरंतर तनाव में रहता है, जो लगातार अवसाद में रहता है, उसे एक सद्गुरु की जरूरत होती है, जो उसे सही दिशा दिखाए। जो किसीभी समय उसे उपलब्ध हो सके। जो अपनी छोटी से छोटी समस्या को सहज रूपसे गुरुको कह सके. सदगुरु साधककी तुच्छ में तुच्छ समस्याओंको भी नझर अंदाज नहीं करते. श्री सिद्धयोग साधन मंडल के संस्थापक पूजनीय विभाकर दादा और वर्तमान गुरु श्री विशालभाई इस बातको बखूबी समझते हैं और साधक को सहज यह अवसाद से बाहर निकालते हैं, साधकोंकी सभी प्रकार की समस्याओं से लड़ने के लिए प्रेरणा और शक्ति प्रदान करते है।

अगर आपको ऐसा लगता है तो आपको भी ध्यान साधनाकी इस विधिसे कुछ मिलेगा तो जरूर आइए बैठिये और अनुभव कीजिए।

आत्मज्ञानकी राह पर ...

हमने ध्यान द्वारा होनेवाले लाभोको तो समझा, किन्तु यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सिद्धयोग द्वारा रचित ध्यान साधना विधिको साधको नियमित रूपसे अभ्यासमें लाते रहे.

आमतोर पे तनावपूर्ण दिनचर्याके बाद रोजाना ध्यान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. रोजमर्रा की जिंदगीमें हम कुछ दिन बीमार भी रहते है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि साधक परिवार, रोजगार, व्यापार या फिर बीमारियों की नियमित चुनौतियों के बावजूद यथासंभव ध्यान की दैनिक साधना जीवित रखे। यह साधककी शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण की प्रक्रियामें मददरूप रहेगा और साथ ही साथ उसे शांतिपूर्ण, आनंदित और स्वस्थ जीवन जीनेकी दिशामे सहायक भी होगा

जैसे-जैसे साधक सिद्धयोग द्वारा रचित ध्यानकी विधिको नियमित करता है, वह कुंडलिनीके चक्रों के सूक्ष्म स्पंदनों को पहचानने में सक्षम होता जाता है और स्थूल और सूक्ष्म शरीरोंमें होनेवाले विविध सूक्ष्म बदलाव को समझनेमें भी सक्षम होता जाएगा। अगर साधक यह साधना सुचारु रूपसे करता रहे तो वह जरूर “आत्म-साक्षात्कार” के मार्ग पर सहजतासे आगे बढ़ता जाता। इसके लावा वह प्राणिक हीलिंग करने में भी सक्षम बन जाएगा।

हालांकि, नियमित रूप से एक सक्रिय प्राणिक हीलर होने के लिए साधक द्वारा घर पर नियमित रूप से ध्यान करना चाहिए और इसके अलावा हर वर्ष सिद्धयोग मंडल द्वारा आयोजित होने वाली प्राणिक चिकित्साकी उन्नत शिवीरमे स्वेच्छासे हिस्सा लेकर प्राण चिकित्साके सिद्धांत और प्रयोगात्मक शिक्षणको आत्मसात करना जरूरी है.

ध्यानमे साक्षीभावका महत्व

जब साधकगण ध्यानके विषयको व्यवहारु रूपसे समझना चाहता है तब साक्षी भाव यह अति महत्वका पहलू हो जाता है .

सामान्यतया, साक्षी का अर्थ निरीक्षक ऐसा होता है।बहुधा यह अर्थ आंखों दवरा बाहर दिख रहे विषय या व्यक्तिमत्व के अवलोकन के लिए ही होता है.

ध्यान के संदर्भ में साक्षी शब्दका अपना अलग मुलभुत अर्थ है. क्या है यह मुलभुत अर्थ?

इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि हमें अकेले बैठना चाहिए और अपने भीतर उठते विचार तरंग और मनोव्यापारका सम्यक निरीक्षण करना चाहिए.  क्यों साधकको ऐसे विचारोंका निरीक्षण करना है? क्योकि जैसे ही साधक एकांतमे अपने विचारोंका धीरे-धीरे निरीक्षण करेंगे, वह दो विचारोंके बीचमे रहे अन्तरालको भी देखेंगे। इस दो विचारोंके बीचमें रहे अन्तरालमें ही “आत्म-साक्षात्कार” होने की संभावना है ऐसा पूजनीय गुरूजी विभाकर पंड्या बताते थे। यह बात  सभी साधकगणके लिए एक बहुत महत्वपूर्ण अभ्यासका पहलू है।

जो भी साधक  ध्यान साधनामें आगे बढ़ना चाहते हैं, साक्षी भाव समझना चाहते है उन्हें सिद्ध योग साधन मंडल द्वारा आयोजित प्रारंभिक शिविर का लाभ उठाने के लिए विनम्र कथन हैं. शिविरों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां देखें।

|| हरि ૐ तत्सत ||