सिद्धयोग मार्ग

|| हरी ॐ तत्सत ||

सिद्धयोग का मार्ग प्राचीन योगियों जो योगके विषयमें विशेषज्ञ थे ऐसे पात्रों द्वारा बनाया गया एक वैज्ञानिक तरीका है, जो साधना पथ पर अभ्यास करने वालों के लिए विशेष रूप से सहायक है.

इस मार्ग की ख़ासियत यह है कि इसमें सिद्ध पात्रने यह ज्ञान प्रत्यक्ष गुरु के पास बैठकर आत्मसात किया होता है. इस तरह, जब तपस्या और साधना के बाद प्राप्त ज्ञान को साधकमें संचारित किया जाता है, तो कल्पना या धारणा द्वारा उन्हें भ्रमित करने का कोई प्रश्न उपस्थित नहीं होता है. इस मार्ग में साधक योग के हर पहलू को स्वयं के अनुभव के स्तर पर सीखता है। इस बात को प्रस्तुत करने के पीछे विशेष उद्देश्य यह है कि समाज में योग के ज्ञान के नाम पर, साधकों को साधना में सच्ची प्रगति के मार्ग पर आगे प्रशस्त करने की बजाय कल्पना और धारणा द्वारा गुमराह किया जाता है। साधकगण के लिए इस तरह के अपूर्ण पात्र के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करना एक तरह से जोखिम भरा काम है.

इस अर्थ में, एक योग्य गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन या अनुग्रह के तहत योग सिखना बहुत महत्वपूर्ण है. वास्तव में, गुरु कृपा के इस सहज मार्ग को शक्तिपातका मार्ग भी कहा जाता है.

सद्गुरु विभाकर पंड्या ने सिद्ध योग साधन मंडल के माध्यम से शक्तिपात द्वारा दीक्षा प्रदान करने हेतु महायज्ञ की शुरुआत की. सद्गुरु विभाकर पंड्या एक सिद्ध योगी थे और अपने जीवन के चालीस वर्षों तक उन्होंने पूरे भारत और नेपालमें योग की सच्ची शिक्षा प्राप्त करने कठिन और कष्टदायक यात्रा की और विभिन्न साधना पद्धतियों द्वारा साधना कर आत्म ज्ञान प्राप्त किया।साथ ही साथ उन्होंने वेदों, उपनिषदो, सनातन धर्म और दुनिया के सभी धर्मों का भी अध्ययन किया। यह सब आपने सांसारिक और विवाहित जीवन में रहकर किया गया था. अपने जीवन के इस अमूल्य चालीस वर्षों के बाद, उन्होंने दुनिया के साधकों के विशेष लाभ के लिए साधना के लिए एक विशेष मार्ग तैयार किया है.

साधकों के ज्ञान के लिए हम एक महत्वपूर्ण बात समझे जो की शक्तिपात परंपरा से संबंधित है. शक्तिपात की परंपरा की वास्तव में तीन शाखाएँ हैं.

सबसे पहले भगवान वेद व्यास द्वारा रचित

दूसरी परशु राम ऋषि द्वारा रचित

तीसरे की रचना भगवान कृष्ण ने स्वयं की है

सिद्ध योग मंडल में भगवान श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई तीसरी शाखा की परंपरा के अनुसार, सद्गुरु विभाकर पंड्या ने हजारों साधकों को शक्तिपात की दीक्षा दी है. वर्तमान में उनके पुत्र और शिष्य ( शिष्य प्रथम ), सिद्धयोगी श्री विशाल भाई द्वारा भारत और भारतके बाहर अमेरिका, ऑस्ट्रलिया और इंग्लैंड जैसे देशोमें यह परंपरा आगे बढ़ाई जा रही है.

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